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Showing posts from June, 2020

आओ कुछ शुरुआत करें।aao kuch shuruaat karen

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आओ कुछ नई शुरुआत करें, थोड़ी ही सही पर कुछ बात करें, जिंदगी अपनी हैं, इनमें खुशियां कहीं खोई सी, उनसे मुलाकात करें, सुने-सुने आंगन में भी, थोड़ी जस्बात भरें, कोई न कोई,जरिया होगा जरूर, जो खुशियों की बरसात करे, आओ उनको ढूंढने की,शुरुआत करें, कई बार घिर जाते हैं,मुश्किलों से, आओ उनसे निकलने की बात करें, खुद को बड़ा करें इतना, कि कोई अपना गिर न सके,  ऐसी अपनी औकात करें, आओ कुछ नई शुरुआत करें, कुछ नया करने की बात करें..... रमन.....

prakriti badi kamaal hai प्रकृति बड़ी कमाल है

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प्रकृति बड़ी कमाल है, इसमें मानव ही एक "सवाल" है, सब कुछ पा लिया इसने, इसको फिर भी बड़ा "मलाल" है, मीठा पसंद उनके लिये, मधु मख्खियों का जाल है, मधु (शहद) तक पहुंचना, भी एक इंसानी चाल है, हमे तरोताजा करती चाय, उसका भी का रंग लाल है, जिसे तीखा चाहिये, उसके लिए मिर्च लाल है, समंदर लहरों से डराती रही, और हमने उससे भी, नमक निकाला कमाल है, खाने पे नमक नहीं, ये तो ऐसा जैसे, सितारों में चमक नहीं, बात खटाई की हो, तो सबसे पहले इमली,लाल है, इसे नमक-मिर्च लगाओ, या चीनी,ये तो कमाल है, प्रोटीन की जरूरत, उसके लिये दाल है, प्रकृति हम सबकी मां है, और हम सब उसके लाल हैं, वो घबराती क्यूँ हैं, उसके लिये ही, तो हम उसके लाल है, पर लाल कैसा है? यही तो सवाल है, लाल के मन में, गहरी साजिश,और गहरी चाल है, उसके नक्शे में जंगल कहाँ, बड़ी बड़ी माल है, खनिजों की भूख, और दोहन की चाल है, वन्य-जीवों को महफूज रख सके, ऐसी उसकी सोच तो है, पर "कैसे" ये बड़ा सवाल है, 'दिनों-दिन' खतरे उन पर बढ़ रहे, वो संख्या में 'दिनों -दिन' घट रहे, ये उनकी कैसी 'देखभाल' है, हर प्र...

मन चोर है man chor hai

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स्ट्रेस का दौर है, पर मेरी प्रॉब्लम कुछ और है, फिर भी लिखता हूँ, मन पर किसका जोर है, मन ही सबसे बड़ा चोर है, जहां न भेजना,उसको वहीं जाना है, जो चीज मना,उसको  वही खाना है, जो न मिले, उसको तो वही पाना है, शायद इसका गुलाम,सारा जमाना है, कमा लो आप, जितना भी कमाना है, तकलीफ तो आना और जाना है, मगर अक्लमंदी मन को समझाना है, मुश्किल है,मगर खुशी यहीं से आना है, रमन....

जीने का मजा

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जीने का मजा, सिर्फ जीने के लिये,जीने में नहीं है, जीने का असली मजा तभी है, जब आप जीवन की गहराई से मिलते हैं, आप खुद अपनी परछाई से मिलते हैं, जो हमेशा आपके पीछे चलती है, और कभी कभी आपसे आगे भी, आपकी पहचान बनकर, आपका व्यक्तित्व, आपकी अहमियत बनकर, आपकी सख्सियत, आपकी नियत बनकर, अपनी जिंदगी को उड़ान दीजिये, उसे जिंदादिली और एक पहचान दीजिये... रमन.....

अच्छे दिन आयेंगे जरूर

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पहले दिन बीत जाता था, फिर दिन गुजारने लगे, और अब काट रहे हैं, उम्मीद है आगे... फिर से दिन बीत जायेगा, फुरसत न होगी, खुद के लिये..समय को तरसूंगा... जीने की राह...थोड़ी कठिन...  और फिर बहुत आसान हो जाती है... ये होता ही है... और ये होगा ही बुरे दिन के बाद अच्छे दिन आएंगे जरूर.... रमन...

इहाँ चकाचौन्द तो रइबे करही!

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इहाँ चकाचौन्द तो रइबे करही! कतको बूड़त, कतको उपरियावत हे! कतको जावत हे,त कतको आवत हे! कतको रोवत हे,अउ कतको हँसत-गावत हे! कभू काकरो, त कभू काकरो,पारी आवत हे! इहाँ कॉकरोच,नई चलै,सब समय बतावत हे! सबके अपन धुन हे,अउ सब के अपन गून हे! कोनो,कोनो ल, त कोनो,कोनो ल,सुनावत हे! कोनो,कोनो ल बिकटावत हे, अउ कोनो कोनो ल भावत हे! कोनो छत्तीसगढ़ीच म गोठियावत हे, त कोनो थोकन दुरिहावत हे, कोनो छत्तीसगढ़ी ल अपन बतावत हे, अउ ओमा हिंदी ल मिलावत हे,.... रमन....

जिंदगी छोटी कविता

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आहिस्ता चलो रेस में, किस्मत से ज्यादा नहीं दौड़ पाओगे, ज्यादा सजाओ मत, जिंदगी को, नहीं छोड़ पाओगे, जब आयेगा हुकुम छोड़ने का, नहीं मोड़ पाओगे, रमन...

मुसीबतों को मैं छोड़ रहा,

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जुनून हौशला अनुभव

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कोयला पर कविता

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जब तक तू जले नहीं, कितना घर चले नहीं, तू है तो कारखाना है, और कितनो घर में खाना है, तूझसे ही,तो जमाना है, तुझसे ही कितनों को,कमाना है, तुझसे ही रेल है, मोटर गाड़ी है, और इनका आना-जाना है, तुझसे ही बिजली है,पानी है, और सुख-सुविधाएँ आनी है, जहां भी तेरा वास है, मानों ईश्वर का प्रवास है, कोई तुझे काला कहे, कोई,किस्मत बदलने वाला कहे, काला तेरा रंग है, तेरे पीछे कितना जंग है, तेरे नाम से ही सिनेमा चल गया, और तेरे नाम से,सत्ता बदल गया, तू ही ऐसा हीरो है, तेरे बिना सब जीरो है, देखो नेक फरिश्ता है, तुझसे हमारा रिश्ता है, चलना है, और जलना है, यही जिंदगी तेरी है, यही जिंदगी मेरी है, @@रमन@@@

मिट्टी पर कविता

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हमने मिट्टी से लगाव,क्यूँ छोड़ दिया, बचपन का वो भाव,क्यूँ छोड़ दिया, मिट्टी सिखाती है,  कैसे खतरों से,लड़ा जाता है, कैसे हर हालात में,बढ़ा जाता है, और कुछ अच्छा भी,गढ़ा जाता है, मिट्टी का स्वभाव है बहना, धूल बनकर हवाओं मे रहना, नए स्वरूप में नई बात कहना, तकलीफों को आराम से सहना, फिर भले ही पड़ जाये उसे बहना, ये तपकर ईंट बन सकता है, जो सालों-साल,हर मौसम में टिकता है, अच्छी मूरत बने तो,बड़ी कीमतों में बिकता है, कोई कुम्हार इसे पिटता है, और इसकी किस्मत लिखता है, कभी घड़ा बनकर,कभी दिया बनकर, और कभी कुल्हड़ में चाय बनकर,बिकता है, अच्छी मिट्टी,अच्छा इंसान बनाती है, उपजाऊं मिट्टी,लोगों को पहलवान बनाती है, फसल की उपज ही,अलग पहचान बनाती है, घुल जाता प्रकृति में, यही इसका स्वभाव है, जब जब नदियों में बहाव है, निरंतर होता इसका कटाव है, यूं तो माटी का,कहां कोई भाव है, फिर भी मेरा,इससे बड़ा लगाव है, माटी है,तो धरती है,और मेरा गांव है माटी के लिये बस इतना सा मेरा भाव है, रमन..