मिट्टी पर कविता
हमने मिट्टी से लगाव,क्यूँ छोड़ दिया,
बचपन का वो भाव,क्यूँ छोड़ दिया,
मिट्टी सिखाती है,
कैसे खतरों से,लड़ा जाता है,
कैसे हर हालात में,बढ़ा जाता है,
और कुछ अच्छा भी,गढ़ा जाता है,
मिट्टी का स्वभाव है बहना,
धूल बनकर हवाओं मे रहना,
नए स्वरूप में नई बात कहना,
तकलीफों को आराम से सहना,
फिर भले ही पड़ जाये उसे बहना,
ये तपकर ईंट बन सकता है,
जो सालों-साल,हर मौसम में टिकता है,
अच्छी मूरत बने तो,बड़ी कीमतों में बिकता है,
कोई कुम्हार इसे पिटता है,
और इसकी किस्मत लिखता है,
कभी घड़ा बनकर,कभी दिया बनकर,
और कभी कुल्हड़ में चाय बनकर,बिकता है,
अच्छी मिट्टी,अच्छा इंसान बनाती है,
उपजाऊं मिट्टी,लोगों को पहलवान बनाती है,
फसल की उपज ही,अलग पहचान बनाती है,
घुल जाता प्रकृति में,
यही इसका स्वभाव है,
जब जब नदियों में बहाव है,
निरंतर होता इसका कटाव है,
यूं तो माटी का,कहां कोई भाव है,
फिर भी मेरा,इससे बड़ा लगाव है,
माटी है,तो धरती है,और मेरा गांव है
माटी के लिये बस इतना सा मेरा भाव है,
रमन..
Bahut hi sundar bhaiya
ReplyDelete